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कुछ कही अनकही

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गुजरते वक्त के साथ हम कितनी जल्दी बड़े हो जाते है। इच्छाओं, भावनाओ को कैसे प्रदर्शित करना है। ये हमे कोई नही सिखाता हम सीख जाते है। हर हाल मे हर वक्त मे हालातो के साथ ढलना। जिन्दगी क्या बस इसी के इर्द गिर्द घूमती है। या इन सब से भी ऊपर कुछ है। कुछ अलग थोड़ा रोमांचक बेहतरीन सुकून भरा इन सबकी ही तलाश में इन्सान भटक रहा है। बरसो से और ये सिलसिला ऐसा जो एक ढलती शाम और उगते सूरज की तरह कभी खत्म नही होगा....................... #Aparna Mishra

जिम्मेदारियां

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कितना बेबस हो जाता है इन्सान कभी-कभी सब उसी का होते हुये भी उसके खिलाफ सा ना चाह कर भी स्वीकार करना पडता उसे उन तमाम परिस्थितियों को जिनके खिलाफ वो हमेशा से था। फिर से बांध लेता है खुद को अपनो कि बनाईं जनजीरो से ऐसे दौर से कब आजादी मिलेगी उसको क्या या चलता रहेगा यही सिलसिला भावनाओं  कि आड़ में अपनो कि नाशुकरानी कर कर।          हमेशा कि तरह..........